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रिपोर्टर – शम्भू प्रसाद

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड्स ख़रीदने वालों के नाम नहीं बताने पर आश्चर्य जताया है। मार्क्सवादी पार्टी ने कहा है कि SBI को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करना चाहिए।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का कहना है कि फ़रवरी में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था की छह मार्च तक इलेक्टोरल बॉन्ड्स ख़रीदने वालों के नाम पब्लिक फ़ोरम में लाया जाना चाहिए। लेकिन हैरानी की बात ये है की मियाद पूरी होने से एक दिन पहले SBI ने नाम उजागर करने के लिए 116 दिन का समय और माँगते हुए 30 जून तक का समय माँगा लिया।

मार्क्सवादी पार्टी ने आरोप लगाते हुए कहा है कि ये सत्ताधारी दल की साज़िश है। जिसके दबाव में SBI काम कर रहा है। 30 जून तक इलेक्टोरल बॉन्ड्स के नाम बताने के लिए समय माँगने का सीधा मतलब ये है कि सत्ताधारी दल को चुनाव बीत जाने तक का मौक़ा दिया जा रहा है। क्योंकि मई में लोकसभा चुनावों के नतीजे आ जाएंगे और जून में नई सरकार भी बन जाएगी ऐसे में इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर पारदर्शिता की सुप्रीम कोर्ट की बात का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। CPM के नेताओं ने इस बात पर हैरानी जतायी कि जिस बैंक का सारा काम काज डिजीटलाइज्ड है, उसे नाम बताने में इतना समय क्यों लग रहा है।

पार्टी ने यह भी कहा है कि SBI स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना कर रहा है। और सुप्रीम कोर्ट को इस बात का संज्ञान लेते हुए निर्देश देना चाहिए कि बैंक जल्द से जल्द इलेक्टोरल बॉन्ड्स ख़रीदने वालों का नाम उजागर करे।मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो ने अपने सभी राज्य इकाइयों और कार्यकर्ताओं को इस मामले में आंदोलन के लिए तैयार रहने को भी कहा है। पार्टी ने कहा है कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया और मोदी सरकार की मिलीभगत की पोल खोलने के लिए लोगों को इस पूरी साज़िश की जानकारी देने के लिए हर ज़िले में प्रदर्शन किया जाएगा।