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देहरादून: 11 नगर निगमों के नगर प्रमुख, 43 नगर पालिकाओं के अध्यक्ष तथा 46 नगर पंचायतों के अध्यक्ष पद हेतु जारी हुआ आरक्षण।

प्रदेश के नगर निकाय सामान्य निर्वाचन 2024 के लिए 11 नगर निगमों के नगर प्रमुख, 43 नगर पालिकाओं के अध्यक्ष तथा 46 नगर पंचायतों के अध्यक्ष पद हेतु आरक्षण / आवंटन की अन्तिम अधिसूचना निर्गत कर दी गयी है।

आरक्षण की अनंतिम सूची तथा उन पर प्राप्त आपत्तियों पर सुनवाई के उपरान्त नियमों के आलोक में आरक्षण में आंशिक परिवर्तन किया गया है।

नगर निगमों में 01 पद एससी, 02 पद ओबीसी तथा 03 पद महिला हेतु (01 ओबीसी महिला समेत महिलाओं हेतु कुल 04 पद) आरक्षित हैं। 5 पद अनारक्षित हैं।

नगर पालिका में एससी हेतु 06, एसटी हेतु- 01 तथा OBC हेतु 13 पद आरक्षित है। 02 एससी महिला, 5 ओबीसी महिला समेत कुल 15 पद महिलाओं हेतु आरक्षित हैं। 17 पद अनारक्षित हैं।

नगर पंचायत में एससी हेतु 06, एसटी हेतु 01 तथा ओबीसी हेतु 16 पद आरक्षित हैं। 02 एससी महिला, 6 ओबीसी महिला समेत 16 पद महिलाओं हेतु आरक्षित हैं। 15 अनारक्षित हैं।

पहली बार निकायों का आरक्षण तय करने में रखा गया जनभावनाओं का ख्याल, आपत्ति का मिला पूरा मौका, सुनवाई के बाद ही फाइनल हुआ आरक्षण।

नगर निकायों का आरक्षण तय करने में पहली बार जन भावनाओं का पूरा ध्यान रखते हुए आरक्षण फाइनल किया गया है। वार्ड से लेकर नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम का अंतिम आरक्षण जारी करने से पहले पूरी प्रकिया का पालन किया गया। ये पहला मौका है जब रिकॉर्ड हजारों की संख्या में आई आपत्तियों को स्वीकार करते हुए सुनवाई का मौका दिया गया। पहली बार बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के शहरी विकास निदेशालय ने आपत्तियों की सुनवाई, निस्तारण कर आरक्षण को फाइनल किया है।

उत्तराखंड राज्य गठन के बाद शहरी विकास निदेशालय ने पहली बार इस लंबी जटिल प्रक्रिया को बेहद तरीके से नियमानुसार संपन्न कराया। जबकि निकायों का आरक्षण फाइनल करना अपने आप में सबसे जटिल और राजनीतिक दबाव वाली स्थिति रहती है। इस बार बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के आरक्षण फाइनल किया गया है। 11 नगर निगम, 43 नगर पालिका और 46 नगर पंचायत का आरक्षण बिना किसी विवाद के फाइनल कर दिया गया है। पूरी प्रक्रिया को लेकर शहरी विकास निदेशालय ने बिना किसी भी राजनीतिक दबाव के संपन्न करा दिया है।

निकायों की राजनीति से जुड़े जानकार इसे शहरी विकास निदेशालय की बड़ी कामयाबी बता रहे हैं। ये पहला मौका है, जब आरक्षण फाइनल करने में किसी भी तरह के राजनीतिक दबाव को स्वीकार नहीं किया गया। आरक्षण फाइनल करने को अपनाई गई पारदर्शी व्यवस्था को लेकर इस बात सत्ताधारी दल के भी कई नेता पूरे समय परेशान रहे। सरकार की ओर से अपनाए गए सख्त रुख के कारण आरक्षण तय करने की प्रक्रिया बिना किसी विवाद के संपन्न हो गई।