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रिपोर्ट- शम्भू प्रसाद

देश की उत्तरी सीमा पर बसा पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड पूरे संसार में देव भूमि उत्तराखंड के नाम से प्रसिद्ध है। उत्तराखंड की संस्कृति उत्तराखंड की धरती और यहां के ऊंचे नीचे हिमालय पर्वतीय भू-भागो को जीवित रखने के लिए बनाई गई है।
भक्ति भावना पर आधारित यहां की संस्कृति अपने आप में विशेष स्थान रखती है। धर्म-अधर्म में अंतर पहचानने वाले यहां के सभी मनु पुत्र अपनी संस्कृति को जीवित रखने की कसम खाए हुए है।

यहां की संस्कृति में मेलजोल का भाव, धर्म, भक्ति भावना और ईश्वर आस्था का रूप देखने को मिलता है। धर्म-अधर्म के बीच हुआ संघर्ष महाभारत भी यहाँ की संस्कृति का एक विशेष और महत्वपूर्ण अंग है

 

। जिसे यहां पे पाण्डव नृत्य या पाण्डव लीला के नाम से भी जाना जाता है। पाण्डव लीला उत्तराखंड की संस्कृति का वह अंग है जो आज भी हमे युगों पुराने इतिहास की याद दिलाता है। यहाँ की संस्कृति में इस इतिहास को जीवित रखने का अलग ही अपना एक अंदाज है। और यही अनोखा अंदाज सदियों से इस संस्कृति में देखने को मिलता आ रहा है।


इसी तर्ज पर जनपद रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ ब्लॉग में ग्राम पंचायत पठाली में पांडव नृत्य का 23 दिसम्बर से शुभारम्भ हो गया है वहीं पांडव नृत्य के मंडलीय अध्यक्ष देवेन्द्र सिंह राणा ने बताया कि पांडव नृत्य का शुभारम्भ दिनांक 23 दिसम्बर को गया था। जिसमें सभी ग्रामवासियों का सहयोग मिल रहा है साथ ही पांडव नृत्य जैसे-जैसे आगे चलेगा तो इसमें गेंडा कौथिक व मरौदार कोथिक का आयोजन किया जाएगा वहीं इस दौरान पांडव नृत्य के मंडलीय उपाध्यक्ष व नवयुवक मगंल दल के अध्यक्ष प्रदीप त्रिवेदी ने कहा कि पांडव लीला हम सब ग्रामवासियों की और से किया जा रहा है साथ ही उन्होंने कहा कि पुराने लोक संस्कृति को बचाने के लिए यह पांडव लीला की जा रही है ताकि जो नई पीढ़ी है उनको इस पांडव लीला से कुछ सीख और पुरानी संस्कृति का ज्ञान मिल सके। इस मौके पर अशोक तिवारी, ढोल वादक रमेश लाल पात्र भारत राणा, पंकज त्रिवेदी, महिला मंगल अध्यक्ष व समस्त ग्रामवासी पांडव नृत्य में मौजूद थे